Nagraj Manjule Biography : सैराट से मराठी सिनेमा को नई पहचान दिलाने वाले निर्देशक

“Nagraj Manjule: संघर्ष से सैराट तक, मराठी सिनेमा का चेहरा बदलने वाले निर्देशक”

भारतीय सिनेमा में जब भी नए प्रयोगों, दमदार कहानियों और सामाजिक मुद्दों को पर्दे पर उतारने वाले निर्देशकों की चर्चा होती है तो Nagraj Manjule का नाम सबसे पहले लिया जाता है। एक छोटे से गांव से निकलकर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले नागराज मंजुळे ने मराठी सिनेमा को एक नया आयाम दिया। उनके निर्देशन में बनी फिल्म सैराट ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की बल्कि मराठी सिनेमा को सात समंदर पार पहचान दिलाई।

शुरुआती जीवन और संघर्ष

Nagraj Manjule का जन्म 24 अगस्त 1977 को महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के करमाला तहसील के जेऊर गांव में हुआ। बचपन आर्थिक तंगी और संघर्षों से भरा हुआ था। परिवार की हालत इतनी खराब थी कि पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें छोटे-मोटे काम भी करने पड़े। “कभी उन्होंने रातभर चौकीदारी की, तो कभी दिन में लोगों के कपड़े प्रेस करके अपनी जरूरतें पूरी कीं।”

बचपन से ही फिल्मों के प्रति उनका आकर्षण था। पढ़ाई में मन ज्यादा नहीं लगता था लेकिन फिल्मों को देखने का जुनून अलग ही था। स्कूल का बैग दोस्तों के पास रखकर वे सिनेमा देखने निकल जाते थे। हालाँकि परिस्थितियाँ कठिन थीं, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पढ़ाई पूरी की। नागराज मंजुळे ने MA और MPhil तक की पढ़ाई की। इसके साथ ही उन्होंने मास कम्युनिकेशन का कोर्स भी किया ताकि फिल्म बनाने के अपने सपने को साकार कर सकें।

शॉर्ट फिल्म से मिली पहचान

फिल्मी सफर की शुरुआत Nagraj Manjule ने शॉर्ट फिल्म पिस्तुल्या से की। यह फिल्म उनके प्रोजेक्ट का हिस्सा थी लेकिन आगे चलकर इसने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। इस फिल्म में उन्होंने समाज के उस वर्ग की समस्याओं को दिखाया जिन्हें अक्सर मुख्यधारा की कहानियों में नजरअंदाज कर दिया जाता है।

इसके बाद साल 2013 में उनकी फिल्म फैंड्री रिलीज हुई। इस फिल्म को भी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फैंड्री ने उन्हें एक सशक्त कहानीकार और संवेदनशील निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया।

सैराट से मिली राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान

साल 2016 में रिलीज हुई फिल्म सैराट ने Nagraj Manjule को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचा दिया। यह फिल्म मराठी सिनेमा की पहली ऐसी फिल्म बनी जिसने 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की। सैराट ने बॉक्स ऑफिस पर तो इतिहास रचा ही, साथ ही इसे 69वें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया।

फिल्म सैराट एक साधारण प्रेम कहानी नहीं थी बल्कि इसमें जातिवाद, सामाजिक असमानता और ग्रामीण समाज की कटु सच्चाई को बारीकी से दिखाया गया था। आर्ची और परशा की प्रेमकहानी के जरिए नागराज मंजुळे ने समाज के उन मुद्दों पर उंगली रखी जिन्हें अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं।

सैराट की लोकप्रियता सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रही। यह फिल्म पूरे भारत में और विदेशों में भी सराही गई। हिंदी, पंजाबी, कन्नड़ और उड़िया जैसी भाषाओं में इस फिल्म के रीमेक बने। इससे साफ जाहिर होता है कि नागराज मंजुळे ने अपनी फिल्म के जरिए वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई।

नागराज मंजुळे ने अपनी पहचान ‘सैराट’ और ‘फंड्री’ जैसी फिल्मों से बनाई थी, और “झुंड” में भी उन्होंने वही यथार्थवादी अंदाज़ दिखाया। यह सिर्फ खेल पर बनी फिल्म नहीं है, बल्कि यह सामाजिक असमानता, गरीबी और शिक्षा की अहमियत जैसे मुद्दों को सामने लाती है।

लेखन और कविताओं में भी रुचि

निर्देशक होने के साथ-साथ Nagraj Manjule एक अच्छे लेखक और कवि भी हैं। उन्हें लिखने का बेहद शौक है। कई बार उनकी कविताओं और लेखन से भी सामाजिक मुद्दों पर उनकी गहरी सोच झलकती है।

संघर्ष से सफलता तक का सफर

Nagraj Manjule की जिंदगी इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कठिन परिस्थितियाँ भी इंसान के सपनों को रोक नहीं सकतीं। कभी वॉचमैन और इस्त्री का काम करके जीवनयापन करने वाले नागराज मंजुळे आज अमिताभ बच्चन जैसे महानायक के साथ मंच साझा करते हैं। यह सफर हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो कठिन हालातों से जूझते हुए भी अपने सपनों को जीना चाहता है।

Nagraj Manjule ने मराठी सिनेमा को एक नई ऊँचाई दी है। उनकी फिल्मों ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया है और समाज का असली आईना दिखाया है। पिस्तुल्या से शुरुआत, फैंड्री से पहचान और सैराट से सफलता की बुलंदियों तक पहुंचने वाले नागराज मंजुळे का सफर बेहद प्रेरणादायी है।

आज सैराट को आए कई साल बीत चुके हैं लेकिन इसकी गूंज आज भी बरकरार है। इस फिल्म ने न केवल मराठी बल्कि पूरे भारतीय सिनेमा के लिए नए द्वार खोले। यही वजह है कि Nagraj Manjule को मराठी सिनेमा का गेम चेंजर कहा जाता है।

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